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इश्क - हुस्न महफिल
महकता रहा
गुलदस्ते का फूल
रात भर महफिल में
शीशे के भीतर से
जलती रही
क्षमा भी संग संग
इधर उठी
इश्क की जुस्तजू
ले कर कसक
उधर झूकी
हुस्न की
बेइरादा इक़रार-ए-पलक
शोखियांँ, मस्तियाँ
झूमती रही
महफिल में
रही लोगों की
मगर नज़र
बेखबर
प्रेम की किताब में
एक प्रेम कहानी
और गढ़ी
हुस्न और इश्क संग
पावनता, बाखुदा
महफूज़ रही
रजनी अरोड़ा
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