facebook

Mugafi

mugafi community

Hey,

Welcome to mugafi
community!

If you want to share new content, build your brand and make lifelong friends, this is the place for you.

Learn & Grow Rapidly

Build Deep Connections

Explore & launch Content

• एक शाम शेर के साथ • सन् १९५२ तपती धूप और चुभती गर्मी का मौसम था। घटी के कांटे शाम के पांच बजे का समय दिखा रहे थे। मगर फिर भी सूरज डूबने का नाम नहीं ले रहा था। गांव में कच्चे कोल यानी लकड़ी और ईट से बने कई घरों में अब शाम की चाय उबलने की सुगंध आ रही थी। ऐसे ही एक घर में तीस वर्षीय श्री बाल कृष्ण जी सफ़ेद पायजामा, कुर्ता और सर पर पारंपरिक सफ़ेद टोपी पहने कहीं जाने के लिए तैयार हो रहे थे। दीवार पर लगे गोल आयने में देखकर उन्होंने अपनी टोपी ठीक की। कुछ ही समय में उनके घर के सामने एक बैलगाड़ी आकर रूकी। बैलगाड़ी चालक भायलू ने भी सफ़ेद पुराना सा कुर्ता, हाफ पायजामा और सर पर पारंपरिक सफ़ेद टोपी पहनी थी। "केशू बाबा... आप आ रहे हैं क्या?" भायलू ने बैलगाड़ी रोकी और बैलों को हांकते हुए गाड़ी घर की छत के नीचे छाया में लगा दी। बाल कृष्ण जी को सब लोग केशू बाबा के नाम से जानते थे। "ओ... भायलू... आ गए।" ओटले पर आते ही, "आओ आओ। पेहले चाय पी लो, फ़िर चलते हैं।" बाल कृष्ण जी ने बैलगाड़ी चालक को देखकर कहा -- "राधा... भायलू के लिए भी चाय ले कर आना।" उन्होंने तुरंत अपनी पत्नी को चाय लाने के लिए आवाज़ लगाई और वो वहीं बाकड़े पर बैठ गए। भायलू आकर ओटले यानी बरामदे की सीढ़ियों पर बैठ गया। कुछ ही देर में राधा दो कप-बसी में गर्मागर्म चाय लेकर आई। राधा ने हल्की नारंगी साड़ी पहनी थी और माथे पर लाल बड़ी बिंदी लगाई थी। राधा का स्वभाव, व्यवहार और सीरत बिलकुल एक भले घर की संस्कारी और आदर्श बहु की तरह था। "राधा, मैं भायलू के साथ पानवे जा रहा हूं। कल तक लौट आऊंगा। तुम ध्यान रखना।" बाल कृष्ण जी ने अपनी पत्नी राधा के हाथों से चाय ले ली और भायलू को भी दी। चाय देते ही राधा सर हिलाकर तुरंत अंदर चली गई। कुछ देर बाद केशू बाबा यानी बाल कृष्ण जी और भायलू चाय पीते ही बैलगाड़ी में सवार होकर निकल पड़े। बैलगाड़ी में सवार होते ही भयालू ने बैल हांक दिए और कच्ची सड़क पर उनका सफ़र शुरू हो गया। गर्मी इतनी थी कि ज़मीन सूखकर सख़्त हो गई थी। और धूल के कण हल्की हवा से भी दूर-दूर तक उड़ रहे थे। हवा का झोका धूल के साथ गर्म उमस ले आता। सड़क वैसे तो समतल थी मगर फ़िर भी कहीं ऊंची तो कहीं नीची। कहीं पथरीली तो कहीं दरदरी मिट्टी वाली। ऐसे में बैलगाड़ी के पहियों के नीचे पत्थर या मिट्टी का टुकड़ा आते ही पूरी बैलगाड़ी हिलने लगती। ऐसे में बेचारे हट्टे-कट्टे बैल भी कुछ समय बाद हांफने लगते। उन दोनों को घर से निकले काफ़ी समय बीत चुका था। अब सूरज लगभग डूब चुका था और अंधेरा छाने लगा था। अंधेरा होते ही बाल कृष्ण जी ने छोटी सी लालटेन जलाकर बैलगाड़ी के एक तरफ़ लटका दी। कुछ समय की और यात्रा करते हुए अब केशू बाबा यानी बाल कृष्ण जी और भायलू अपनी मंज़िल के क़रीब पहुंच ही चुके थे। अब बस उन्हें गांव की पहाड़ी के पास झाड़ियों से घिरे एक छोटे से कच्चे रास्ते को पार करना था। ऐसे में उन्होंने उस रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए मोड़ ले लिया। "रूक जाईए... आप आगे नहीं जा सकते!" मगर तभी अचानक उन्हें एक भारी आवाज़ सुनाई दी और वो घबराकर वहीं रूक गए। भायजू ने तुरंत बैल को शांत किया और बैलगाड़ी थोड़ी पीछे कर ली। उतने में एक पुलिस अधिकारी एक हाथ में लालटेन और दूसरे हाथ में डंडा लिए तेज़ी से उनकी तरफ़ आ धमका। "क्या बात है, साहब?" बाल कृष्ण जी ने शराफत से हाथ जोड़कर सवाल किया। "आप दोनों इतनी रात को कहां जा रहे हो? यहां क्यों आए हो?" पुलिस अधिकारी ने बैलगाड़ी की तरफ़ नज़र घुमाई। उसके बाद उस अधिकारी ने दोनों यानी केशू बाबा और भायजू को देखते हुए अपनी नज़रे उपर से नीचे तक घुमाई। "हम कोई गलत काम नहीं कर रहें, साब... हम तो बस यहीं पास में आए थे..." भायजू पुलिस अधिकारी को देखकर कांपने सा लगा और उसने हाथ जोड़ दिए। "क्या बात है, साहब? मेरा यहां अपना खेत है। मेरे आदमी को कुछ सामान की ज़रूरत थी, वही देने जा रहा था।" बाल कृष्ण जी भी थोड़े घबराए हुए थे। "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। मैं आप दोनों पर शक नहीं कर रहा।" पुलिस अधिकारी ने सहजता से जवाब दिया। "तो आपने हमें क्यों रोका, क्या हम जा सकते है?" बाल कृष्ण जी ने बड़े आदर के साथ पूछा। "नहीं, आप अभी नहीं जा सकते। आपको कुछ देर यहीं इंतज़ार करना होगा।" पुलिस अधिकारी के कहते ही -- "मगर हमने क्या किया है, साहब?" बाल कृष्ण जी चिंता में पड़ गए। भायजू की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। "नहीं, आप समझ नहीं रहे। मैं जानता हूं, आपने कुछ नहीं किया। दरअसल, मैं आपकी जान बचाने के लिए ऐसा कहे रहा हूं।" पुलिस अधिकारी ने बाल कृष्ण जी के कंधे थपथपाकर आसवासन दिया -- "तो फ़िर आप हमें जाने क्यों नहीं दे रहे..." मगर बाल कृष्ण जी पुलिस अधिकारी की पूरी बात सुने बिना ही घबराहट में बोल गए। "आप पेहले तो शांत हो जाइए और वहां दिखाई। आपको सब समझ आ जायेगा।" पुलिस अधिकारी ने अपनी क़मर पर लगी टॉर्च निकाली और ऑन करते ही उस रास्ते की दिशा में मोड़ दी, जिस तरह वो जाना चाहते थे। टॉर्च की रोशनी के बीच अगले ही पल उन पुलिस अधिकारी के कहने पर बाल कृष्ण जी और भायजू ने परेशान होकर उस तरफ़ नज़रे घुमाई और वहां का नज़ारा देखते ही डर के मारे एक पल के लिए जैसे उनकी धड़कने रूक सी गई। पुलिस अधिकारी के टॉर्च चमकाते ही उस गुप अंधेरे और झाड़ियों से घिरी सड़क के बीचोबीच दो बड़ी-बड़ी खौफ़नाक आंखें जुगनू सी चमक उठी। उस गुपचुप शांत अंधेरे में एक ताकतवर शेर सड़क के बीचोबीच अपने शिकार की दावत उड़ा रहा था। उस शेर के वो निकिले दांत, उसकी मज़बूत मांस-पेशियां। उसके नुकीले पंजे। और इन सबसे ज़्यादा भयानक उसका खून से सना चेहरा और ताकतवर जबड़ा, जो देखते ही देखने वाले के दिलों-दिमाग में दहशत पैदा कर देता। उस बड़े से शेर को देखते ही बाल कृष्ण जी और भायजू बिलकुल सुन्न पड़ गए। वो दोनों ये सोचकर काफ़ी घबरा गए थे कि वो दोनों कैसे अंजाने में मौत की तरफ़ बढ़ रहे थे... और मौत शेर की शक्ल में बस उनसे कुछ मीटर की दूरी पर दावत फरमा रही थी। अगर आज उस पुलिस अधिकारी ने उन्हें न रोका होता तो उनके साथ क्या हो सकता था... "इस शेर के जाते ही मैं ख़ुद आपके साथ चलूंगा। तब आपको इंतजार करना होगा।" पुलिस अधिकारी ने कहते ही टॉर्च ऑफ कर ली। मगर बाल कृष्ण जी और भायजू बिल्कुल ख़ामोश थे। इस नज़ारे को देखने के बाद उनके गले से शब्द निकल पाना मुश्किल हो गया था। वो दोनों अब तक सदमे में थे। इस दिल दहला देने वाली घटना से एक तरफ़ बाल कृष्ण जी और भायजू दोनों काफ़ी डरे हुए थे। तो वहीं वो दोनों भगवान का और उन पुलिस अधिकारी का शुक्र मना रहे थे, जिन्होंने एहम मौके पर आकर उनकी जान बचा ली थी। उस दिन से बाल कृष्ण जी और भायजू ने तैय कर लिया कि आगे से जब भी वो बाहर जायेंगे तब लालटेन के साथ टॉर्च लाइट और लंबा डंडा भी साथ लेकर ही जायेंगे। और तभी से जब भी वो बाहर निकलते अपने पास लालटेन के साथ टॉर्च लाइट और लंबा डंडा रखना कभी न भूलते। इतना ही नहीं उन्होंने ये सीख अपने बच्चों तक भी पहुंचाई। तब से सिर्फ़ बाल कृष्ण जी ही नहीं बल्कि उनके परिवार का कोई भी शख्स जब भी यात्रा के निकलता बिना भूले अपने पास टॉर्च लाइट और लंबा डंडा ज़रूर रखता। अपनी रक्षा के लिए पेहले से तैयार रहना सही भी है। क्योंकि चाहे आपको भूत-प्रेत से भले ही डर ना लगे या वो हो या ना भी हो। लेकिन जंगली जानवर वास्तव में होते हैं। और उनसे आपको कभी भी खतरा हो सकता है। मगर देखा जाए तो आज के इस मॉर्डन एरा में हमें जानवरो से कम और जानवरों हम खूंखार इंसानों से ज़्यादा खतरा है। तो इस बारे में आपका क्या विचार है? - बि. तळेकर ✍🏻 11th - Sept - 2022 #letsunlu #writersofmugafi #mugafi #shortstory
Image
Rajni Arora
Shruti Pandey
5 Likes

Trending Posts