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आनन्द थोड़ा जल्दी में था। “…… जल्दी चलो भईया….. “ — टैक्सी ड्राइवर को ऊँची आवाज़ में बोलता हुआ आनन्द आगे बड़बड़ाया, “…. कहीं फ्लाइट छूट ही न जाए… “
एयरपोर्ट के बाहर खड़ा आनन्द इस बार भी टैक्सी ड्राइवर से टैक्सी धीमे चलाने और मीटर का बिल ज़्यादा आने पर बहस कर रहा था। “….. नहीं बाऊजी, मैं नौरमल स्पीड से ही चला कर लाया हूँ…. आपका बिल इतना ही आना था…..”। “…. मैं नहीं मानता…..”, — कह कर आनन्द ने पूरे बिल से पचास रूपए काट कर टैक्सी ड्राइवर को पकड़ाए और मुड़कर वहां से निकल आया। समय का अभाव होते हुए भी आर्थिक तंगी से परेशान आनन्द टैक्सी ड्राइवर से मोल-भाव करने से भी नहीं चूका।
हालांकि लाईन लंबी नहीं थी और सामान की एंट्री कराने के लिए उसके पास केवल एक ही बैग था। फिर भी वह बोल पड़ा, “….. अरे…. जल्दी कीजिए न……” । आनन्द की आँख से आँख मिलाता कस्टमर सर्विस करने वाला तो चुप रह गया परन्तु थोड़ी दूर जाने पर जिस आदमी से आनन्द टकराया, उसकी अदम्य आवाज़ के आगे जैसे आनन्द चुप ही हो गया हो, “……… जी मेरी फ्लाइट अभी अभी छूट गई हैं…….. परन्तु यह बैग मुझे उन तक पहुँचाना अत्यंत ही आवश्यक हैं……।…….. कृपया कर अगर आप मेरी मदद ……..”, उस आदमी की आवाज़ को बीच में ही काटता हुआ एक बार को तो आनन्द ने मना किया मगर जब उस आदमी ने आनन्द के हाथों में एक अच्छी रकम थमा दी तो जैसे वह न कर ही न पाया।
थोड़ा विचार-विमर्श करने के बाद कि, ‘………… करना ही क्या हैं……….. आखिर एक बैग ही तो पहुँचाना हैं……… जा तो मैं रहा ही हूँ……. और यदि इस पर मुझे यह रकम मिल रही हैं तो क्या बुरा हैं….. आनन्द बैग अपने साथ ले जाने के लिए राज़ी हो गया जैसे ही आनन्द ने बैग को उठाया – हैरान आनन्द थोड़ा ठिठका कि वह छोटा सा बैग का वज़न इतना ज़्यादा कैसे हो सकता हैं — आखिर क्या हैं इसमें। यह पूछने के लिए जैसे ही वह उस आदमी की तरफ मुड़ा तो देखा वह तो जा चुका हैं। आनन्द ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई पर वह तो जैसे गायब ही हो गया था।
किन्हीं चार अनजान नम्बरों से खुलने वाला बैग अब आनन्द को थोड़ा भयभीत कर रहा था। एक बार को तो उसका मन हुआ उस बैग को वहीं छोड़ दे परन्तु दूसरे हाथ में नोटों की रकम देख, और फिर उसे उस आदमी की वह बात भी याद आई कि,….. इस बैग के साथ आपको सिक्योरिटी से जुड़ी कोई दिक्कत नहीं आएगी।
किसी तरह वज़नी बैग को कंधें पर लाद आनन्द फ्लाइट की ओर जाता हुआ रास्ता पार करने लगा। दो दो बैग उठाए वह पसीने से तर भी होने लगा। अनजान एक डर को मन में समेटे आनन्द बीच-बीच में अपने चारों तरफ पैनी नज़र से देख लेता था कि कहीं कोई उसे यह बैग ले जाते देख न रहा हो।
खैर, किसी तरह विमान पर अपनी सीट पर पहुँच उस वज़नी बैग को सीट के नीचे आनन्द ने इस तरह रखा जैसे वह उसे छिपाना चाह रहा हो। डेढ़ घंटे की इस विमान की यात्रा में आनन्द एक पल भी सुकून की एक झपकी न ले पाया।
अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँचते ही तुरंत जा कर आनन्द ने वह वज़नी बैग जिसको देना था उसे सौंप दिया। एक पल को उसे यह ख्याल भी आया कि वह जो रकम जो उस आदमी ने उसे दी थी वो भी उसे ही सौंप दे, ताकि वह स्वयं चैन की साँस ले पाए।
इस घटना के दो दिन पश्चात तक आनन्द एक अजीब से भय से घिरा रहा। तत्पश्चात उसने फैसला किया कि वह इस तरह की किसी भी परिस्थिति में मात्र धन की वजह से अपनेआप को नहीं उलझाएगा।
रजनी अरोड़
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