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सर्प्राइज़!!
एकदम से अपने कमरे में आते ही घरवालों ने पीछे से आ ख़ुशी के मारे हल्ला मचा दिया। बर्थड़े केक के साथ पसंदीदा खाना टेबल पर सजा हुआ पड़ा था। जन्मदिन के दिन इतनी सारी चीज़ें और तैयारी देख भी ख़ुशी की जगह घबराहट हो गयी। माँ ने प्यार से माथा चूम जन्मदिन की बधाई दी तो आज सुबह की लड़ाई के दर्द पर मरहम लग गया था। “पर इतनी तैयारी क्यों कर दी यार और सबको क्यों बुला लिया” दिमाग में बार बार कौंधने लगा।
कमरे से बाहर जा मम्मी को बाहर बुलाया ताकि उनसे ये सब का मतलब पूछा जा सके।
“क्या यार मम्मी, ये सब करने की क्या ज़रूरत थी”
“अब सुबह तक तो तुम्हें ही ज़रूरत लग रही थी, अब तुम्हारे पापा ने सब इतने प्यार से इंतेज़ाम किया है तो तुम्हारे नखरे नहीं बंद हो रहे”
“वैसा नहीं है मम्मी बस अब मन नहीं है पार्टी का”
“अपने ये नखरे बंद करो और तैयार होकर केक काटो। सब इंतज़ार कर रहे हैं”
“जी मम्मी”
“ऐसे मुँह मत लटकाओ अब आज सब तुम्हारी पसंद की जगह से पसंद का ही खाना आया है”
मध्यमवर्गीय घरवालों का अपने बच्चों के साथ ऐसा ही रहता है, जब कुछ माँगो तब दिलायेंगे नहीं और जब उम्मीद ना हो तो पूरी कायनात लूटा देंगे। अब क्या करूँ, एक तरफ़ इतने प्यार से सजा हुआ खाना और दूसरी तरफ़ गले तक भरा हुआ पेट। कुछ और खाने की जगह ही कहाँ बची है अब, पर अगर अब ये बता दिया इन सब लोगों को तो फिरसे डाँटेंगे। दुबारा तमाशे के डर से मैंने भी किसी को कुछ नहीं कहा।
दरअसल सुबह दोस्तों के साथ पार्टी के लिए पापा मम्मी से पैसे माँगे, पर उन्होने महीने के आख़िरी दिनों का हवाला देते हुए मना कर दिया। मैंने सोचा आज के दिन कुनमुना का अपनी बात मनवायी जा सकती है तो थोड़ा नाटक किया। पर एकाएक मम्मी का एक थप्पड़ गालों पर पड़ा “चौदह साल के हो गयी हो और हरकतें चार साल वाली”। उसके बाद पापा की भयानक डांट ने जन्मदिन की यादगार शुरुआत करा दी थी।
नब्बे के दशक के मध्यमवर्गीय बच्चों की हालत गद्दे में पिंज दिये जाने वाली रुई से मिलती जुलती थी। किसी बात पर माँ बाप का क्रोध भड़के तो बस बच्चों की पिंजाई कर अपना गुस्सा शांत कर लेते थे। बस यही तजुर्बा उस दिन मुझे हुआ था। भगवान पर मुझे महीने की अंतिम तारीखों में पैदा करने की अलग नाराज़गी उभरी, “क्या आप नहीं जानते मेरे मम्मी पापा मिडिल क्लास हैं और ऊपर से कम पैसे वाले दिनों में आपने मुझे इनके यहाँ पैदा करवा दिया” उस समय ऐसा लगा जैसे सबसे ज़्यादा गलत मेरे साथ ही हुआ है।
स्कूल के कपड़े पहन लिए थे और इतनी बेईज़्ज़ती के बाद घर पर रहना बेमक़सद था, पर स्कूल जाकर अपने ग्रुप को क्या कहूँगी ये प्रश्न मुँह बाये खड़ा हो गया। रास्ते में खोये हुए चलती जा रही थी, स्कूल में पार्टी ना देने वाले को कंजूस कहा जाता था। आज का बेईज़्ज़ती सहने का कोटा पूरा हो चुका था इसलिए बंक मरने का सोचा और पार्क की तरफ़ क़दम बढ़ा लिए। मैंने अपनी धुन में देखा नहीं की मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरे पीछे चुपचाप चलती आ रही थी। पार्क में जाकर उसने पीठ पर धप्पा किया तो मेरी आँखें उसको वहाँ देख प्रश्न से भर गयी।
“तुम यहाँ कैसे”
“जन्मदिन के दिन तुम यहाँ कैसे, दो बार आवाज़ दी पर तुमने नहीं सुना तो तुम्हारे पीछे आयी”
उसको देख मेरी सुबह से रोकी रुलाई फूट पड़ी। और उसको मैंने सुबह का सारा हाल बता दिया।
“मैं उस घर में वापिस नहीं जाऊँगी, कोई मुझे प्यार नहीं करता”
“अररे पागल, तूने ही तो बताया था तेरे मम्मी पापा का दादी के ऑपरेशन पर खूब ख़र्चा हुआ”
“हाँ हुआ तो, पर फिर भी आज के दिन मेरे को क्यों मारा”
“कोई बात नहीं, आज मारा है तो कल प्यार भी करेंगे। तू गुस्सा थूक दे पहले”
“उससे क्या होगा”
“तेरा जन्मदिन स्पेशल हो जाएगा”
“और वो कैसे”
“देख अब आज हम स्कूल तो जा नहीं सकते, तो आज हम चलते हैं मेरे घर पे”
“हाँ ताकि रही सही कसर तेरे मम्मी पापा पूरी कर दें”
“आज घर पर सिर्फ प्रिया चाची हैं, उनसे मेरी पटती है। वो किसी को कुछ नहीं कहेंगी”
बुझे हुए मन से मैं अपनी सखी के घर गयी जहाँ प्रिया चाची ने पहले तो स्कूल बंक करने के लिए डांटा और पूरी बात सुन प्यार से खाना खिलाया। उसके बाद मैंने अपनी सखी के कपड़े पहने और दोनों कपड़े बदल प्रिया चाची के साथ घूमने चले गए। बच्चों की पिक्चर, अप्पू घर और बाहर का खाना। शाम के साढ़े चार बज गए थे। जब हम वापिस आए और प्रिया चाची ने मुझे कपड़े बदलने को बोला ताकि वह मुझे घर छोड़ आयें।
वह मुझे बाहर ही छोड़ कर चली गयी और अंदर एक नया बवाल मेरे लिए तैयार था। स्पेशल बर्थड़े मांगा था पर ये तो ज़रूरत से ज़्यादा ही स्पेशल हो गया था। जैसे तैसे केक काटा और थोड़ा सा सबको खा खिला मैंने दूसरे कमरे चली गयी। पलंग के गद्दे के नीचे से एक कागज़ झाँक रहा था, पापा ने अपनी स्कूटर गिरवी रख कर पैसा लिया था और यह उसी का हिसाब था। सुबह के थप्पड़ से ज़्यादा पापा का ऐसा करना रुला गया। सही कहती थी मेरी दोस्त, आज मारा है तो कल प्यार भी करेंगे। ऐसे ही तो होते है मम्मी पापा।
सबको खाना दे मम्मी पापा उस कमरे में आये जहाँ अपने आँसू छिपाने के लिए मैंने अंधेरा कर लिया था।
“मुझे पता है तुम अभी भी नाराज़ हो, पर अब तुम बड़ी होकर ऐसी ज़िद्द करोगी तो कैसे चलेगा”
“आई एम सॉरी मम्मी पापा” कहते हुए मैंने दोनों को गले लगा लिया। उनके गले लग ऐसे लगा जैसे मेरी खुशियाँ पूरी हो गयी।
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