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#monsooncontest #writingchallenge #unlu #writerscommunity #writers #unlucommunity #writingpromptchallenge सलेटी रंग के आसमान पर बिजली की लकीरें कौंधती देख, राहुल के माथे पर परेशानी की लकीरें उभर आयी। काम की वजह से वह पंद्रह दिन से मयूरी को शॉपिंग पर नहीं ले जा पाया था। उसकी पत्नी मयूरी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में पली बढ़ी थी और विवाह के बाद 6 महीने पहले ही दिल्ली आयी थी। उसको अकेले बाहर जाने में अभी सहूलियत नहीं लगती थी इसलिए वह राहुल को कई दिन से मनुहार करते हुए आज सुबह उससे रूठ गयी। “अच्छा आज पक्का समय से आऊँगा और साथ मॉल चलकर शॉपिंग और डिनर करेंगे” घर से निकलते हुए राहुल ने वादा तो कर दिया था पर अब किसी भी समय बारिश होने को थी। पंद्रह मिनट की बारिश ही काफी होती थी उसके दफ्तर के बाहर वाली सड़क को तालाब में तब्दील करने को और अभी दफ्तर का समय पूरा होने में घंटा भर था। ट्रेफिक जाम, घर देरी से पहुँचना और फिरसे मयूरी से झगड़े की आशंका में वह जल्दी से काम निपटा रहा था। तभी “कहाँ हो तुम, ऑफिस से तो निकले नहीं होगे” “वहीं हूँ और कहाँ जाऊंगा” “वही रहो और कहीं जाने की तुमको फुर्सत कहाँ” राहुल के मोबाइल के दूसरी और ख़मोशी पसार चुकी थी।  घंटे भर बाद राहुल बाहर निकला तो गड्डे छोटे मोटे तालाब बन चुके थे। “क्या यार कैसी निक्कमी सरकार है, कुछ नहीं हो सकता इस देश का, सारा प्रशासन ही कामचोर है।“ बड़बड़ाते हुए वह बेसमेंट पार्किंग की और बढ़ चला। पर वरुण देवता आज पूरी तरह मेहरबान थे, बेसमेंट में 3 फूट पानी भर चुका था और अभी भी बारिश चालू थी। हालत ऐसी थी की अपनी बाइक वो निकाल नहीं सकता था, कैब ऑटो आदि कुछ मिल नहीं सकता था और मेट्रो स्टेशन 5 किलोमीटर दूर। राहुल को आज कायनात पर पूरा भरोसा हो चला था, कि वो उसका और मयूरी का झगड़ा करना चाहती है क्योंकि जिस मौसम से उसे सबसे ज़्यादा चिड़ थी आज उसी की वजह से उसका झगड़ा तय था।    ख़ैर मेट्रो तक पैदल चलके जाने के लिए उसने बारिश के रुकने का इंतज़ार करना मुनासिब समझा। घंटे भर बाद बारिश थमी तो वह कदम संभालते मेट्रो की तरफ़ बढ़ चला। 2 किलोमीटर चल वह चाय की टपरी पर पहुंचा। “अररे साहब अदरक वाली चाय पी कर जाइयेगा, ठंड नहीं लगेगी” “ठीक है बना दो” मौसम के मिजाज़ से बेफ़िक्र टपरीवाला चाय बनाने लगा तो राहुल ने देखा, कि उसके बच्चे सभी ग्राहकों को चाय देने और पैसे लेने में फुर्ती से काम कर रहे हैं। राहुल सोचने लगा कैसे जाएगी अनपढ़ता इस देश से, जब लोग अपने बच्चों से आज भी काम कराने में इतने मसरूफ़ है। पाँच मिनट बाद जब एक बच्चा उसे चाय देने आया तो उसने चाय लेते हुए पूछा “क्यों बेटा स्कूल नहीं जाते” “जाते हैं साहब, स्कूल के बाद पापा का कभी कभी हाथ बंटाने आ जाते” “अच्छा कौनसी क्लास में हो” “दसवीं में” “तुमको तो घर पर पढाई करनी चाहिए, ना कि यहाँ पर काम” “आज बारिश अच्छी हुई ना तो इसलिए हम दोनों भाई आ गए, वरना माँ पापा को हमारा काम करना पसंद नहीं” “बारिश में क्यों, आज तो इतना कीचड़ है, गाडियाँ भी कम चल रही हैं” “ऐसे मौसम में चाय की बिक्री अच्छी हो जाती है साहब” कहते हुए वह बच्चा वहाँ से काम निपटाने लगा। राहुल उठकर टपरीवाले को पैसे देने लगा, तो रेडियो पर बजते गाने के साथ उसे सुर मिलाता देख रुक गया। “कैसे खुश रह लेते हो आप ऐसे खराब मौसम में” नोट थमाते हुए बोला “साहब मौसम तो ऊपरवाला जाने, पर हमारी खुशी तो हमारे हाथ है। बारिश और सर्दी के मौसम में हमारा गल्ला दुगना होता है, तो हमें क्या दुख” “ठीक है भाई” “ये लीजिये आपके पैसे” राहुल वहाँ से चल पड़ा। आज पैदल चलते हुए उसके पास सोचने का पूरा वक़्त था। वह मौसम जो उसके और बहुत सारे लोगों के लिए आफत था एक टपरीवाले की खुशी का सबब था। जबकि उसके पास उससे ज़्यादा अच्छी ज़िंदगी थी फिर भी वह कभी बारिश में भीगने की खुशी कभी महसूस नहीं कर पाया। शुरू से ही इस मौसम से अजब सी कोफ़्त पाले रहा। अभी बीते हफ़्ते ही उसने मयूरी को बारिश में टहलने की बात पर डांट दिया था। 6 महीने के साथ में मयूरी के साथ होने वाले झगड़ों की वजह को आज वह समझ पा रहा था। उसने ख़ुद को सही गलत के ऐसे बंधनों में बाँध रखा था कि किसी और दृष्टिकोण को वह तवज्जो नहीं दे पाता था। इन्ही सब विचारों में खोया वह मेट्रो स्टेशन पहुँच गया और जल्दी से घर के लिए मेट्रो ली। घर पहुँच उसकी उम्मीद से विपरीत मयूरी उसकी पसंद का खाना डाइनिंग टेबल पर सजा उसका इंतज़ार कर रही थी। उसने उसके देर से आने की मजबूरी को अनकहा ही समझ लिया था। कपड़े बदल खाना खाते हुए आज राहुल शांत ही था। “कुछ चाहिए तुमको राहुल” “थोड़ी देर में एक दूध वाल कॉफी, जैसी’ तुमको पसंद है”  “क्या हुआ आज काली कॉफी नहीं” “नहीं आज तुम्हारी पसंद ट्राइ करते हैं” तकरीबन रात 11 बजे मयूरी उसके लिए कॉफी बनाने रसोई में गयी तो राहुल ने ख़ुद से रेडियो पर उसका पसंदीदा शो चला दिया। मयूरी को राहुल का बदला हुआ व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। कॉफी बन चुकी थी और रेडियो पर आरजे ने बोला “आज का गाना एक पति का उनकी पत्नी का तोहफ़ा है और साथ ही एक प्यारा सा मैसेज। देखो मुझे बातें बनाना नहीं आता और तुम मेरा अनकहा भी समझ जाती हो, पर शायद अबतक मेरी ओर से कमी रही, मैं आज तक तुम्हारा कहा भी सही से नहीं समझ पाता हूँ।  पर अबसे कोशिश रहेगी इस कमी को पूरा करने की, तुम्हारी पसंद को समझने की” “पति ऐसे भी होते हैं और एक हमारे हैं” मयूरी बुदबुदाई “मयूरी” अपना नाम रेडियो पर सुन वह चौंकी “मयूरी यह गाना आपके लिए राहुल की तरफ़ से” वो पूरी तरह से चौंक चुकी थी। अबके सजन सावन में की स्वरलहरियाँ रेडियो पर गूँजी ही थी कि राहुल ने आकार मयूरी के हाथों से कॉफी थामी। दोनों की आँखों के सावन में मन का सारा मैल धुल गया।

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Husna  Banu
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